शॉर्ट्स/रील्स की लत से कैसे बचें? (how to avoid shorts or reels)

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विशेष लेख - शॉर्ट्स/रील्स की लत से कैसे बचें?
पढ़ने में लगने वाला समय - 10 मिनट (for slow readers) 
विषय - मानसिक स्वास्थ्य  (Mental health) 






(चेतावनी :- इस लेख में कुछ ऐसी बातें कही गई है जिससे आपको लग सकता है की यह लेख केवल बकैती करने के उद्देश्य से कही गई है, पर यकीन कीजिए केवल बकैती करना मेरा उद्देश्य नहीं है कभी-कभी चीजों को सामने रखने के लिए पैकिंग बदलनी पड़ती है और यदि फिर भी आपको इस लेख में प्रयोग किए गए शब्दों से समस्या हो आप कमेंट सेक्शन का सहारा ले सकते हैं। 

यह लेख एक रचनात्मक लेखन की श्रेणी में आता है जिसका विषय मानसिक स्वास्थ्य है। इसकी जानकारी के स्त्रोत विभिन्न लेख और इंटरनेट के निबंध है। हालांकि विशेष परामर्श के लिए हम आपको यही सुझाव देंगे कि किसी विशेषज्ञ की ही सलाह लें। यह लेख केवल आपको जागरूक करने के लिए ही है।)


"क्या आपका बच्चा दिन ब दिन चिड़चिड़ा या गुस्सैल होता जा रहा है?"😠

"क्या वह हर छोटी - छोटी बात में इरीटेट हो  जा रहा है??"😒😒

"क्या वह अपनी  पढाई  में कंसन्ट्रेट नहीं कर पाता और आउटडोर गेम्स से जी चुराने लगा है???"😪






हो सकता है कि आप इन चीजों को नोटिस कर रहे हों लेकिन शायद आप जो नोटिस नहीं कर पा रहे हैं की खुद शायद आप भी गाहे - बगाहे बिना बात के मोबाइल के साथ घर में भी घूम रहे हैं या बिना किसी खास वजह के स्क्रीन स्क्रॉल करते जा रहे हैं। 
        मामला अब भी उतना अलार्मिंग नहीं है लेकिन अब शायद आपको अलर्ट हो जाना चाहिए क्यूंकि अब आप सोशल मीडिया के गिरफ्त में आ चुके हैं, और हर पल पेजेज स्क्रोल करना आपकी डेली रूटीन में शुमार हो गया है। आप सोच रहे होंगे कि शायद मै आर्टिकल को ज्यादा स्पाइसी बनाने के लिए इसे ' हॉरर टच' दे रहा हूँ लेकिन यकीन कीजिए यह अभी भी इनिशियल स्टेज पर है और अभी यदि आपने इसे नोटिस नहीं किया तो मामला बिगड़ सकता है। मतलब अगर अभी भी आपने कारणों को नोटिस नहीं किया तो आप एक 'मोबाइल बफ़ ' में बदलते जा रहे हैं। 
मोबाइल बफ़ एक टर्म है जो बहुत ज्यादा मोबाइल से चिपके रहते हैं उन्हें मोबाइल बफ़ की संज्ञा दी जाती है। 
मोबाइल में भी सिर्फ आजकल विडियोज और खासकर शॉर्ट वीडियो देखना एक लत सी बन चुकी है। इसके कुछ साइड इफेक्ट्स हैं।

क्या हैं नुकसान?:- कुछ चीजें हैं जो हम में बदलाव पैदा कर रहे हैं। चीजें पहले की तुलना में बदली हैं और फिर भी हम उन्हें समझना नहीं चाहते। इन्हें हम नुकसान या लाइफ स्टाइल चेंज के रूप में भी नहीं समझ पा रहे हों। सोचिये क्या आप अपने बच्चें में इन बातों को गौर करते हैं?

1)बैचैनी /कंसट्रेशन की कमी

2)सडेन मूड चेंज 

3)भाषा बिहेवियर में बदलाव 

4)आलस होना या एक्टिविटीज का कम होना


बैचैनी, कंसट्रेशन की कमी :- बच्चे चंचल होते ही हैं. उनकी एक्टिविटीज को ट्रैक करना मुश्किल भी होता है और समझना सिरदर्द. लेकिन अगर आपके अन्दर एक समझ पैदा हो रही है कि वह एक खास एक्टिविटी , या पैटर्न को फॉलो कर रहा है तो यह नार्मल है और अगर आप उसकी दिनचर्या और पीछे के मोटिव को नहीं समझ पा रहे हैं तब शायद आप यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि  कि आपका बच्चा 'डोपामाइन एडिक्शन 'का शिकार होता जा रहा है।
                                          रिलैक्स! यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि मेंटल स्टेट है.हम सभी उन चीजों को ही करना पसंद करते हैं जिसमें हमें मज़ा आता है। यह नार्मल है, लेकिन जब जरुरी और गैर जरुरी का फर्क भूलकर अपने प्रायरिटीज को ताक पर रखकर मज़ा लेने की कोशिश या मनोरंजन करना चाह्रते हैं तो मेंटल हेल्थ के फील्ड में आपको नशेड़ी समझा जाता है।  
जी हाॅँ, नशेड़ी!!
आपका बच्चा चूँकि अपने प्रायरिटीज को नहीं समझ पाता इसलिए आप उसे बच्चा कहते हैं और इसलिए उसे अपने मन का करने देते हैं और उसे नशेड़ी बनने देते हैं। यानि डोपामाइन का नशा करने  देते हैं वास्तव में डोपामाइन वह केमिकल रिएक्शन होता है जिससे हमें फील गुड वाला अच्छा फील होता है।
गौर से सोचे तो नशे का पूरा कांसेप्ट ही डोपामाइन वाला है और डोपामाइन आपके बिहेवियर को पूरा का पूरा बदलकर रख सकता है। यदि आपका बच्चा अपनी डेली एक्टिविटी को ढंग से नहीं करता या करना नहीं चाहता और आप अपना स्ट्रेस कम करने या काम से बचने के लिए मोबाइल पकड़ा देती हैं और आपका बच्चा शांति से मोबाइल पकड़े आप से सबकुछ अच्छे बच्चे की तरह करवा ले रहा है यानि तैयार हो जा रहा है तो वैरी गुड 🙌  आपने अपने बच्चे को मोबाइल का एडिक्शन करवा दिया है। अब बच्चा बिगड़े तो मोबाइल जिम्मेदार और मोबाइल बिगड़े तो बच्चा जिम्मेदार। हें, हें हें!😁😁😁
यानि बच्चा अब मोबाइल लेने के लिए छटपटाए आपसे अपना काम करवा लेने के लिए मोबाइल फिरौती की शर्त रखे तो गुस्साए नहीं। बच्चे को कूटे नहीं। उससे बातें करें उनके स्कूल फ्रेंड्स के बारे में बातचीत करें। उनकी हाॅबिज़ के बारे में पूछें। उनकी  हाॅबिज़ में उनके साथ टाइम स्पेंड करें।
बच्चे की धैर्यहीनता का कारण उसकी मनलायक एक्टिविटीज का न होना है और बच्चे का मन उसी एक्टिविटी में लगता है जिसमें उसे मज़ा आता है। इसलिए यदि आप चाहते हैं कि बच्चा आपका ठीक समय पर सारा काम करता-करवाता रहे तो उसकी स्क्रीन टाइमिंग रोजाना आधे घंटे से ज्यादा न रखें और मोबाइल में गेमिंग की लत न लगाएं।
    यूट्यूब  में केवल उसी विडियो को रिकोमेंड करें जो बच्चे की एजुकेशनल वैल्यू का हो, और मेरी माने तो उस विडियो को भी डाउनलोड कर एक्सटर्नल विडियो प्लेयर में दिखाएँ।
एकाग्रता में कमी का कारण आप ऊपर ही पढ़ चुके हैं। एकाग्रता बढ़ाने का शॉर्टकट तरीका गेमिंग करने का है लेकिन लॉन्ग रन में बच्चों का माइंड डायवर्ट ही करेगा, इसलिए बच्चों में एकाग्रता बढ़ाने के लिए ऐसे तरीकों का सहारा लें जो डिजिटल न हो।
फुटबॉल, क्रिकेट,योग आसन ध्यान की प्रैक्टिस करवाएं। 


सडेन मूड स्विंग्स :- इसका लक्षण आपको तभी दिख जाता हैजब आपका बच्चा शॉर्ट वीडियो को बार - बार स्क्रॉल करता रहा है और उसकी मन लायक चीजें न मिलने पर वह बार - बार स्क्रीन स्क्रॉल करके कंटेंट ढूंढता और चूंकि वह शॉर्ट वीडियो पर अलग - अलग इमोशंस को कैच करता है इसलिए मूड स्विंग्स का होना बिल्कुल आम है। बच्चों को कुछ क्रिएटिव बनाना सिखाएं, इससे उसमें किसी चीज को बनाने की क्षमता भी आएगी और वह क्रिएटिव या यूनिक थिंकिंग की ओर भी बढ़ेगा।
भाषा - बिहेवियर में बदलाव :- भाषा या बिहेवियर में बदलाव का कारण वैसे तो एनवायरमेंटल फैक्टर्स भी हो सकते हैं लेकिन एक मुख्य करण बच्चों के द्वारा उन डिजिटल कैरेक्टर्स को हूबहू कॉपी करना हैजिन्हें वह हीरो समझते हैं या जिन्हें  वह पसंद करके कॉपी करना पसंद करते हैं।
आखिर भई कौन हीरोईक फील' नहीं लेना चाहता? आज की पूरी की पूरी क्यों इतनी डिजिटली एक्टिव है? क्यों इतनी कॉपी कैट बनी हुई है पढ़े यहाँ यही कारण है कि बच्चे बिलकुल अपने नुन्नू - मुन्नू के सर्किल में भीअपने - आपको कुल दिखाने के लिए, अपना दबदबा कायम करने के लिए अपने आइडल को, उनकी हरकतों को कॉपी करते हैं।अगर आप गौर से सोचें तो आदमी के कुछ बेसिक फीचर्स होते हैं जो वह हर उम्र में करता है इसमें कोई रॉकेट साइंस नहीं है।

भाषा/ बिहेवियर में बदलाव :-बच्चे की भाषा में आ रही गड़बड़ियों को सुधारने के लिए आप बच्चे को डायलॉग प्रैक्टिस या coversation (बातचीत करना सिखाना) करवा सकते हैं।बच्चों में क्रिएटिव राइटिंग को बढ़ावा दे सकते हैं।अपनी मातृभाषा में बच्चे से बात करें व बच्चों को अपनी बात सामने रखने का मौका दें।
आलस होना या एक्टिविटीज का कम होना:- बच्चों के आलसी होने का मुख्य कारण बच्चों को मोबाइल देकर अपना समय और मेहनत बचाने की कोशिश करना है। बहुत से गार्डियन ओवर प्रोटेक्टिव होते हैं तो कुछ गार्डियन पेरेंटिंग कांसेप्ट के बारे में सोचते तक नहीं हैं।
                शायद बच्चों और पौधों को ये एक जैसा समझते हैं। लेकिन इतना भी समझना जरूरी हैं कि पौधे हों या बच्चे स्पेस सभी को मिलना चाहिए।मॉनिटरिंग जरूरी है।डिसिप्लिन के नाम पर बच्चों के बचपन का हनन करना उचित नहीं है। 
देखिए कौन सा सिचुएशन आपसे क्या डिमांड करता है, आपका बच्चा आपसे क्या चाहता है, आप अपने बच्चे से क्या चाहते हैं? यह आप दोनों से बेहतर कोई नहीं जानता, इसलिए पहले एक - दूसरे को जानें, समझें , समय बिताएं।
हैप्पी पैरेंटिंग - बेस्ट ऑफ़ लक!