समुद्री जीवन विचित्र है। ये है एक दरियाई घोड़ा जिसे हिन्दी मे अश्वमीन कहा जाता है।
ये हैं क्रिसमस आइलैंड रेड क्रैब मादा केकड़ा हजारों कि संख्या में बच्चों को जन्म देती है और उन बच्चों को एक - एक करके खाने लगती है।
(video credit - Chris Bray Photography)
आप शायद परेशान हो रहे हैं। माफ कीजिए, मेरा इरादा आपको मानसिक तौर पर परेशान करना कतई नहीं है। मैं सिर्फ प्रकृति की कुछ बातों को आपके साथ साझा करना चाहता हूँ। मै फूड - चेन की बात नहीं कर रहा क्योंकि अगली बात आपको ज्यादा विचलित करेगी। कृपया बच्चों को इस विषय से दूर रखिए।
आपने अपनी जिंदगी में देखा है या नहीं कुछ कुत्ते, बिल्ली अपने नवजात बच्चों को मार देते हैं। जी हाँ, अपने पैदा किए हुए बच्चे...
अब आप शायद कहेंगे 'हाँ, लेकिन वह तो तभी मारते हैं जब बच्चा कमजोर या रोगग्रस्त पैदा होता है और दुर्भाग्यवश कुछ दिन में मर जाने लायक हो जाता है। जी, बिल्कुल ठीक। वे नहीं चाहते की कमजोर और मरियल बच्चा तिल - तिल कर जिंदगी को ढ़ोए। प्रकृति का चुनाव उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर करती है। लेकिन क्या हम इन्सानों को इसमें शामिल होकर प्रकृति का संतुलन या पर्यावरण का भार ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए?
कल शाम किसी काम से जब मैं बाहर गया था तब सड़क के किनारे एक कुत्ते को मैंने लेटे हुए पाया... धुंधले अंधेरे में मुझे ऐसा लगा जैसे वह हाँफ रहा हो। गर्मी में यह बात आम है। लौटते हुये भी मैंने उसे उसी प्रकार अंधेरे मे हाँफते हुए देखा...मन में संदेह सा हुआ कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं? और आज सुबह फूलवाली से सुना गली में पिल्लों कि संख्या बढ़ जाने के कारण उन्हें जहर देकर मार दिया गया है। मैं और मेरी पत्नी दोनों हतवाक थे। संतुलन बनाए रखने का इतना क्रूर तरीका किसी को अमानवीय नहीं लगा? सुना बड़े कुत्तों को भी जहर की 'खुराक' दी गई थी। कुत्ते हमारी तरह सभ्य प्राणी नहीं उनको नियंत्रित करने की कोशिश करने की बात समझ में आती है लेकिन उनकी संख्या इस तरीके से हत्या कर कम करने की कोशिश करना सही स्ट्रेटजी का हिस्सा नहीं हो सकता।
हमारी नगरपालिकाएं इन कुत्तों की संख्या कम करने के लिए नसबंदी कार्यक्रम लंबे समय से चला रही है।
("इन आवारा जानवरों को वर्तमान में पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम 2023 के तहत नियंत्रित किया जाता है, जिसके लिए उन्हें पकड़ना, नपुंसक बनाना, टीका लगाना (रेबीज के लिए) और (सीएनवीआर) वापस समुदाय में छोड़ने की आवश्यकता होती है। ये नियम पहली बार 2001 में पेश किए गए थे और 2010 में और एक बार फिर 2023 में संशोधित किए गए थे। कुछ संशोधनों के अपवाद के साथ, कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए सीएनवीआर का अंतर्निहित सिद्धांत नहीं बदला है।" -the better india.com)
बहुत बार लोग भी कुत्तों को मारते या बिल्डिंग के सेक्युर्टी गार्ड्स से उन्हें पीट कर भगाने के लिए बाध्य करते हैं। कई बार कई लोग बिलावजह छोटे - छोटे पिल्लों के साथ मस्ती - मज़ाक के बहाने उनका उत्पीड़न करते हैं। यदि आप भी ऐसे हालातों में यह सोचें कि काश मैं उस व्यक्ति के खिलाफ कुछ कर सकता तो इन बातों को जेहन में रख सकते हैं।
यदि आप चाहें तो Animal Welfare Board of India (AWBI) के आधिकारिक वैबसाइट पर जाकर अन्य धाराओं के बारे में जान और अपनी शिकायत दर्ज भी कर सकते हैं।
( AWBI)Animal Welfare Board of India
कुछ और अन्य बातें जो आपको किसी को ऐसे जानवरों को सीधे - सीधे उत्पीड़न करने से रोकेगी -
आर्टिकल 51A (G) के तहत अपने परिवेश और ईकोलॉजी की सुरक्षा करना हमारी ज़िम्मेदारी है और यदि कोई व्यक्ति इस विधि को नहीं मानता तो उसे दंडित किया जा सकता है।
इंडियन पेनल कोड के सेक्शन 428 के तहत जानवरों को जहर देना अपराधी को जेल के सलाखों के पीछे पहुंचा सकता है और उसे 2 साल की जेल, जुर्माना या दोनों दिए जा सकते हैं।
सेक्शन IPC की धारा 429 के अनुसार कोई भी जानवर हाथी, ऊंट, घोड़ा, भैंस, गाय जिनकी कीमत 50 या उससे अधिक रुपयों की हो सकती है अपराधी को 5 साल की जेल , जुर्माना या दोनों चीज़ें एकसाथ हो सकती है।
आशा है आपको यह कोशिश पसंद आई होगी। यह बहुत छोटे तौर पर एक बेसिक जानकारी दी गई क्योंकि इतना किसी को जागरूक करने के लिए काफी है।
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